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आ यः प॒प्रौ जाय॑मान उ॒र्वी दू॑रे॒दृशा॑ भा॒सा कृ॒ष्णाध्वा॑। अध॑ ब॒हु चि॒त्तम॒ ऊर्म्या॑यास्ति॒रः शो॒चिषा॑ ददृशे पाव॒कः ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā yaḥ paprau jāyamāna urvī dūredṛśā bhāsā kṛṣṇādhvā | adha bahu cit tama ūrmyāyās tiraḥ śociṣā dadṛśe pāvakaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। यः। प॒प्रौ। जाय॑मानः। उ॒र्वी इति॑। दू॒रे॒ऽदृशा॑। भा॒सा। कृ॒ष्णऽअ॑ध्वा। अध॑। ब॒हु। चि॒त्। तमः॑। ऊर्म्या॑याः। ति॒रः। शो॒चिषा॑। द॒दृ॒शे॒। पा॒व॒कः ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:10» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (जायमानः) प्रकट हुआ (कृष्णाध्वा) कर्षित किया अर्थात् जिसे हल से जोतें, वैसे पहियों से सतीरा मार्ग जिसने वह (दूरेदृशा) जिससे दूर देखते हैं उस (भासा) प्रकाश से (उर्वी) अन्तरिक्ष और पृथिवी को (आ) चारों ओर से (पप्रौ) व्याप्त होता है और (अध) इसके अनन्तर (ऊर्म्यायाः) रात्रि का (बहु) बहुत (चित्) भी (तमः) अन्धकार (शोचिषा) प्रकाश से (तिरः) तिरस्कार करता है और (पावकः) पवित्रकर्त्ता हुआ (ददृशे) देखा जाता है, उसको आप लोग जानिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि अवश्य बिजुलीरूप अग्नि को जानें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो जायमानो कृष्णाध्वा दूरेदृशा भासोर्वी आ पप्रावध ऊर्म्याया बहु चित्तमः शोचिषा तिरस्करोति पावक सन् ददृशे तं यूयं विजानीत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (यः) (पप्रौ) व्याप्नोति (जायमानः) प्रकटः सन् (ऊर्वी) द्यावापृथिव्यौ (दूरेदृशा) यया दूरे पश्यन्ति तया (भासा) दीप्त्या (कृष्णाध्वा) कृष्णः कर्षितोऽध्वा मार्गो येन (अध) आनन्तर्ये (बहु) (चित्) अपि (तमः) अन्धकारः (ऊर्म्यायाः) रात्र्याः। ऊर्म्येति रात्रिनाम । (निघं०१.७) (तिरः) तिरोभावे (शोचिषा) प्रकाशेन (ददृशे) दृश्यते (पावकः) पवित्रकर्त्ता ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरवश्यं विद्युदग्निर्वेदितव्यः ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी विद्युतरूपी अग्नीला अवश्य जाणावे. ॥ ४ ॥